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hasya ras ka udaharan |हास्य रस के 10+ उदाहरण, परिभाषा

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hasya ras ka udaharan :- नमस्कार मित्रों कैसे हैं आप लोग आशा करता हूं आप बिल्कुल ठीक होंगे आपका हार्दिक स्वागत है हमारे इस लेख में आज के इस लेख के मदद से हम हास्य रस के बारे में जानकारी प्राप्त करने वाले हैं।

हम आपके जानकारी के लिए बता दे कि हास्य रस हिंदी ग्रामर का एक बहुत अच्छा टॉपिक है और इसमें से कई सारे ऐसे सवाल उत्पन्न होते हैं जो आपके परीक्षाएं में पूछे जाते हैं।

मगर कई सारे ऐसे छात्राएं भी मौजूद है जो हास्य रस के बारे में थोड़े से भी नहीं जानते हैं और उनका यही सवाल रहता है कि आखिर हास्य रस क्या है और हास्य रस के उदाहरण क्या है और हास्य रस का परिभाषा क्या होता है।

तो इन्हीं सभी लोगों का सवालों का जवाब देने के लिए हमने इस लेख को लिखा है तो चलिए शुरू करते हैं इस लेख को बिना देरी किए हुए और हास्य रस से जुड़ी जानकारी को प्राप्त करते हैं।

hasya ras ka udaharan | हास्य रस के 10+ उदाहरण

1.  हॅसि हॅसि भाजें देखि दूलह दिगम्बर कौं,

   पाहुनी जो आवैं हिमाचल के उछाह में ।

  कहे ‘पद्माकर सु काहू सो कहै सो कहाँ,

  जोइ जहाँ देखे सो हँसई तहाँ राह में ।॥

स्पष्टीकरण–

दोस्तों इस पद्य में बिलकुल साफ रूप से शिव यानी कि “महादेव” के विवाह का वर्णन है ।

स्थायी भाव :-इस मे स्थायी भाव ” हास ” है।
आलम्बन :-इस मे आलम्बन ” हिमालय की अतिथि-स्त्रियाँ ” है।
आलम्बन विभाव :-इस मे आलम्बन विभाव ” शिव का विचित्र रूप” है।
अनुभाव :-इस मे अनुभाव ” हँसते-हँसते भागना, लोट-पोट होना आदि ” है ।
व्यभिचारी भाव :-इस मे व्यभिचारी भाव ” हर्ष, औत्सुक्य आदि ” है।

2.  बहुएं सेवा सास की, करती नहीं खराब।

पैर दाबने की जगह, गला रही है दाब।।

3.  पितहिं मातहिं उरिन भये नीके।

     गुरु ऋण रहा सोच बड़ जी के॥

4. जेहि दिसि बैठे नारद फूली।

    सो दिसि तेहि न बिलोकी भूली ॥

5. कृष्ण में मोहन बसे, गाजर में गणेश |

  मुरली करेला में बसे, रक्षा करे महेश ||

6. काहू न लखा सो चरित विशेखा ।

    जो सरूप नृप कन्या देखा ।

7. माथे पर गंगा हँसै , भुजनि भुजंगा हँसै,

हास की को दंगा भयो, नंगा के बियाव में|

8.  आगे चले बहुरि रघुराई ।

     पाछे लरिकन धुनी उड़ाई।।

9. हाथी जैसा देह, भैंसे जैसी चाल।

तरबूजे सी खोपड़ी,सिलफर सी गाल।

10.  पिल्ला लीन्ही गोद में मोटर भई सवार।

  अली भली घूमन चली किये समाज सुधार।।

हास्य रस क्या है ?

हास्य रस को मनोरंजक रस माना गया है, इस रस के व्यक्ति वस्तु स्थान तथा अन्य नामों को इस प्रकार से लिखा जाता है कि उसके वर्णन करने पर एक हंसने वाला वाक्य प्रदान होता है। उसी को हास्य रस कहा जाता है और इस हास्य रस की काफी महत्वपूर्ण भूमिका होती है हिंदी ग्रामर में।

हास्य रस का परिभाषा ?

किसी वस्तु या व्यक्ति की भावनाओं और घटनाओं से संबंधित  लिखित काव्य को पढ़ने से उत्पन्न रस को ही हास्य रस कहते हैं। दोस्तों अगर हम इसे दूसरे शब्दों में कहे तो , किसी व्यक्ति या पदार्थ  की असाधारण वेशभूषा, आकृति चेष्टा आदि को देखकर हृदय में जो आंनद, खुशी, विनोद, हसी, इत्यादि का भाव जाग्रत होता है, उसे ही हास्य रस कहा जाता हैं। यही हास जब अनुभाव, विभाव तथा संचारी भावों से पुष्ट हो जाता है तो उसे ही ‘हास्य रस’ कहते हैं।

हास्य रस का उदाहरण :-

  हाथी जैसा देह, भैंसे जैसी चाल।

  तरबूजे सी खोपड़ी,सिलफर सी गाल।

अर्थ  :-  इस वाक्य का अर्थ है कि कोई ब्यक्ति है जिसका शरीर हाथी जैसा है और वह भैंस जैसे चलता है और उसका सर तरबूजे जैसा है और उसका सिरफल जैसा गाल है।

दोस्तों इस वाक्य  को पढ़ने से हसी छूटता है तो इस वाक्य को हम हास्य रस में रख सकते है और इसे हास्य रस कह सकते है।

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हास्य रस के प्रकार

दोस्तों हम आपकी जानकारी के लिए बता दें कि यहां से हास्य रस दो प्रकार होते हैं और जिस में से पहले प्रकार का नाम आत्मस्थ है और दूसरे प्रकार का परस्थ है, इन दोनों प्रकार के बारे में हमने नीचे में स्टेप बाई स्टेप करके लिखा है तो आप उन्हें ध्यान से पढ़े और समझे।

1. आत्मस्थ

दोस्तों ” आत्मस्थ हास्य रस ” के अंतर्गत व्यक्ति स्वयं यानी खुद से ही हास्य उत्पन्न करता है, इस के लिए किसी अन्य चीज़ या माध्यम की जरूरत नहीं होती है। कुछ ऐसी परिस्थितियां या संयोग बनती है जब स्वयं ही मुख मंडल पर हास्य की आभा पैदा होती है।

जैसे  :- हाथी जैसा देह, भैंसे जैसी चाल।

तरबूजे सी खोपड़ी, सिरफल सी गाल।।

2. परस्थ

दोस्तों ” परस्थ हास्य रस ” के अंतर्गत व्यक्ति को हास्य यानी कि हँसी उत्पन्न करने के लिए दूसरे व्यक्ति की अथवा नायक या किसी अन्य चीज़  की आवश्यकता होती है। नायक के भाव-भंगिमाओ द्वारा किए गए क्रियाकलापों अथवा उसके परिधान या वेशभूषा के माध्यम से हास्य उत्पन्न होता है और उसी को हम परस्थ कहते है।

जैसे :- बुरे समय को देख कर गंजे तू क्यों रोय। किसी भी हालत में तेरा बाल न बाँका होय ।।

हास्य रस का अन्य उदाहरण

  •  सर पर गंगा हसै, भुजानि में भुजंगा हसै

हास ही को दंगा भयो, नंगा के शादी में ।।

  •  काहू न लखा सो चरित विशेखा ।

जो सरूप नृप कन्या देखा ।।

  • “जेहि दिसि बैठे नारद फूली।

 सो दिसि तेहि न बिलोकी भूली”

             [ FAQ,s ]

Q1. हास्य रस का सबसे सरल उदाहरण

Ans. ” मामा गए बाजार नानाजी गए दिल्ली दिल्ली से लाए दो बिल्ली, बिल्ली ने मारा पंजा नाना जी हो गए गंजा “

Q2. हास्य रस के कितने भेद ?

Ans. हास्य रस के दो भेद होते है । 1- आत्मस्थ , 2- परस्थ

Q3. हास्य रस के कवि कौन है?

Ans. काका हाथरसी, अशोक चक्रधर, हुल्लड़ मुरादाबादी, इत्यादि हास्य रस के प्रसिद्ध कवि थे।

Q4. हास्य रस का स्थायी भाव कौन सा है?

Ans. हास्य रस का स्थायी भाव ‘ हास्य ‘ ही होता है।

Q5. हास्य कविता कैसे लिखें?

Ans. हास्य का कविता लिखना बहुत आसान है इस रस में कविता लिखने से पहले हमें यह ध्यान रखना चाहिए कि हमें हंसाने वाला कविता लिखना है और उस कविता में ऐसे शब्दों का वर्णन करना है जिसे पढ़ने पर हंसी का वर्णन हो।

Q6. हास्य वाक्य

Ans. ” मामा गए बाजार नानाजी गए दिल्ली दिल्ली से लाए दो बिल्ली, बिल्ली ने मारा पंजा नाना जी हो गए गंजा ”  यह एक हास्य वाक्य है।

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Video Source By :- Nirbhay Hindi Education
   [ Conclusion, निष्कर्ष ]

दोस्तों आशा करता हूं कि आपको मेरा यह लेख ( hasya ras ka udaharan | हास्य रस के 10+ उदाहरण ) बेहद पसंद आया होगा और आप इस लेख के मदद से हास्य रस से जुड़ी सभी जानकारी को प्राप्त कर चुके होंगे।

हमने इस लेख में सरल से सरल भाषा का उपयोग करके आपको हास्य रस से जुड़ी जानकारी देने की कोशिश की है क्योंकि हमें मालूम है कई सारे ऐसे लोग हैं जो इसके बारे में नहीं जानते हैं,

 तो उन्हीं सभी लोगों के लिए ही हमने इस लेख को लिखा था और आप सभी पर भी मेरा संपूर्ण विश्वास है कि आप सभी मेरे इस लेख को ध्यान से पूरे अंत तक पढ़ चुके होंगे तो इस लेख को पढ़ने के लिए धन्यवाद……

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